Friday, September 12, 2008

रेथ..


वक्त , ज़रा सा थम जा
इन पलों को जीने तो दे

बहुत कुछ छूटा जा रहा है
ज़रा मुड़कर पीछे देखने तो दे

लोगों इस भाग दौड़ के बीच
एक सुकून का लम्हा तो दे

तनाव के तो बहुत कारण हैं
एक हसी की वजह तो दे

घर से तो बहुत दू हैं अपने
घर की याद करने का समय तो दे

माँ तरसती है हमारी आवाज़ सुनने को
माँ को माँ बुलाने का वक्त तो दे

लाखों की भीड़ में भी
तन्हाई का एहसास होने दे

अभी तो सफर बस शुरू हुआ है
अभी से ही थका हुआ महसूस होने दे

वक्त , ज़रा सा थम जा
इन पलों को जीने तो दे

1 comment:

Shivam Sharma said...

hey....
nice 2 see another budding poet cmin through....
lovd ur effort....
the feelings really show...
cud work a bit on structure...
but tht don't matter if u've got the feel right...
N U HAVE....
keep it up....